बड़ा ब्लॉगर कमाता ज़रूर है। यह बड़े ब्लॉगर का मुख्य लक्षण है।
कोई नाम कमाता है, कोई इज़्ज़त कमाता है और कोई पैसा कमाता है।
कोई ईमानदारी से कमाता है और धोखाधड़ी से कमाता है।
कोई एक पम्फ़लैट तक नहीं लिख पाता लेकिन बड़ा ब्लॉगर सारा इतिहास लिख देता है। कोई अपनी किताब लिखकर बिना विमोचन के ही बांट कर धन्य हो जाता है लेकिन बड़ा ब्लॉगर अपनी एक किताब का दो दो बार विमोचन करा लेता है और वह भी दो दो राजधानियों में।
बड़े ब्लॉगर की बड़ी बात होती है।
‘एक से भले दो‘ की मिसाल सामने रखते हुए, वह अपने ही जैसा एक और पकड़ लेता है। बंगाल के तो जादूगर मशहूर हैं और दिल्ली के ठग भी एक ज़माने में काफ़ी मशहूर थे लेकिन बिहार के चोर ज़्यादा मशहूर नहीं हैं।
बहरहाल बंगाल के जादूगर भी बग़लें झांकने लगेंगे अगर दिल्ली का ठग और बिहार का चोर मिलकर काम करने पर आ जाएं तो...
और अगर ये ब्लॉगिंग में आ जायें तो बिना किताब छापे ही बेचकर दिखा दें और जो बड़े बड़े तीस मार खां बने फिरते हैं हिंदी ब्लॉगर, वे पैसे देंगे पहले और किताब उन्हें मिलेगी 4 माह बाद और वह भी 2 बार विमोचन होने के बाद।
जिस किताब का 2 बार विमोचन हो चुका हो, उसकी आबरू तो पहले ही तार तार कर दी गई है, अब उसमें क्या बचा है ?
कोई शरीफ़ आदमी तो उसे अपनी किताबों के साथ रखेगा नहीं और न ही कोई शरीफ़ किताब उसके पास रहने के लिए तैयार होगी।
ज़्यादातर किताबें बिना विमोचन की होती हैं।
उनका विमोचन बस पाठक ही करता है।
कोई नाम कमाता है, कोई इज़्ज़त कमाता है और कोई पैसा कमाता है।
कोई ईमानदारी से कमाता है और धोखाधड़ी से कमाता है।
कोई एक पम्फ़लैट तक नहीं लिख पाता लेकिन बड़ा ब्लॉगर सारा इतिहास लिख देता है। कोई अपनी किताब लिखकर बिना विमोचन के ही बांट कर धन्य हो जाता है लेकिन बड़ा ब्लॉगर अपनी एक किताब का दो दो बार विमोचन करा लेता है और वह भी दो दो राजधानियों में।
बड़े ब्लॉगर की बड़ी बात होती है।
‘एक से भले दो‘ की मिसाल सामने रखते हुए, वह अपने ही जैसा एक और पकड़ लेता है। बंगाल के तो जादूगर मशहूर हैं और दिल्ली के ठग भी एक ज़माने में काफ़ी मशहूर थे लेकिन बिहार के चोर ज़्यादा मशहूर नहीं हैं।
बहरहाल बंगाल के जादूगर भी बग़लें झांकने लगेंगे अगर दिल्ली का ठग और बिहार का चोर मिलकर काम करने पर आ जाएं तो...
और अगर ये ब्लॉगिंग में आ जायें तो बिना किताब छापे ही बेचकर दिखा दें और जो बड़े बड़े तीस मार खां बने फिरते हैं हिंदी ब्लॉगर, वे पैसे देंगे पहले और किताब उन्हें मिलेगी 4 माह बाद और वह भी 2 बार विमोचन होने के बाद।
जिस किताब का 2 बार विमोचन हो चुका हो, उसकी आबरू तो पहले ही तार तार कर दी गई है, अब उसमें क्या बचा है ?
कोई शरीफ़ आदमी तो उसे अपनी किताबों के साथ रखेगा नहीं और न ही कोई शरीफ़ किताब उसके पास रहने के लिए तैयार होगी।
ज़्यादातर किताबें बिना विमोचन की होती हैं।
उनका विमोचन बस पाठक ही करता है।
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